Sunday, March 2, 2008

बच्चे

बच्चों का झुरमुट
घंटी बजते भगा
फुर्र फुर्र फुर्र

मन

खिली खिली सी धुप थी
खिला खिला था मन
फ़िर ये क्या हो गया
बुझ गए सारे दीप
मुरझ गए सारे सुमन

हिम

हिम, हिम, और हिम
यहाँ से वहाँ तक हिम
श्वेत, शीतल हिम
पहाड़ हिम, घाटी हिम
पत्ते पत्ते पर हिम
छत पर हिम, द्वारे हिम
रास्ते रस्ते, गली गली हिम
ऊपर हिम, नीचे हिम
बाहर हिम, भीतर हिम
आगे हिम, पीछे हिम
अलाव जला बैठे
होने लगी बातें
रिश्तों की गरमी से पिघली हिम.

Tuesday, February 26, 2008

वसंत

कूंकी कोयल बोली आया है वसंत
झूम झूम मंजर बोले
हाँ हाँ आया है वसंत
सिर हिला हिला
पीपल ने भी भरी हामी
बरगद क्यों पीछे रहता
आगे बढ़ उसने दी सलामी
नीम की फुनगी थी नाज़ुक
अभी अभी उस पर उतारा था रूप
वो ख़ुद थी गवाह,
आया है वसंत .