Sunday, March 2, 2008

हिम

हिम, हिम, और हिम
यहाँ से वहाँ तक हिम
श्वेत, शीतल हिम
पहाड़ हिम, घाटी हिम
पत्ते पत्ते पर हिम
छत पर हिम, द्वारे हिम
रास्ते रस्ते, गली गली हिम
ऊपर हिम, नीचे हिम
बाहर हिम, भीतर हिम
आगे हिम, पीछे हिम
अलाव जला बैठे
होने लगी बातें
रिश्तों की गरमी से पिघली हिम.

1 comment:

Arpita said...

रिश्तों की गर्मी से पिघली हिम.......यही होता है... और ज़िन्दगी को इसी कि ज़रुरत है ...